अब तक पढी तमाम कॉमिक्स में जो कभी भुलाए नहीं भूलती साहब उसका नाम है मधुमुस्कान . दिल्ली की मायापुरी प्रेस से छपने वाली ये कॉमिक्स अच्छा हुआ बहुत पहले छपनी बंद हो गई वरना मुझ जैसे तो शायद कुछ लिख-पढ़ ही न पाते ।अपने ओवर- आल कंटेंट और रीच के नज़रिए से देखें तो ये इंद्रजाल कॉमिक्स और अमर चित्र कथा के पासंग भी न थी मगर इसकी सबसे बड़ी खूबी थी इसका एक आभासी संसार ।इसके तमाम करेक्टर्स या कहें पात्र मायापुरी नाम की जगह के बाशिंदे थे जिनके बीच में कभी-कभी संपादक जी कानों में फूल खोंसे बेवकूफों की तरह नमूदार हुआ करते थे ।क्या मज़ेदार आदमी रहा होगा संपादक जो कार्टूनिस्ट को अपनी खिल्ली उडाने की पूरी छूट दिए रहता था ।पोपट-चौपट , सुस्तराम-चुस्तराम , जासूस चक्रम और चिरकुट, भारत कुमार , नन्हा जासूस बबलू ---सबकी एक अलग अदा थी ,एक ख़ास अंदाज़ था ।ग़म का इज़हार ये किरदार ''बू..हू...हू...." कह कर और खुशी का "यम...यम..." कह कर किया करते थे ।गुस्से में होता था "गुर्र..गुर्र..गुरर्र "!
बहुत ही गाढे किस्म की स्याही में ये छपी होती थी जिसमें एक ख़ास किस्म की महक हुआ करती थी । अखबार या किसी पत्रिका को आज भी सबसे पहले जब मैं हाथ में लेता हूँ तो उसे सूंघे बिना नहीं रहता । ये स्मेल उनमें हमेशा टिकी नहीं रहती मगर आज भी अगर मधु मुस्कान का कोई पुराना अंक मिल जाए तो मैं उसमें वही बू तलाशने की कोशिश करूँगा जो वक़्त के बोझ तले दब कर कब का दम तोड़ चुकी है । कल रात 'यशस्वी' की ब्लॉग लिस्ट में दिए एक लिंक के ज़रिये मैं उस ज़माने में जा पहुँचा जहाँ खोपडी वाली गुफा में रहता था एक चलता -फिरता प्रेत , ज़नाडू में रहा करता था जादूगर मैनड्रैक और लोथार , बहादुर चलाता था 'नागरिक सुरक्षा दल' (नासुद) और भी तमाम जहान के कार्टूनों का बसेरा था वहां । मैंने भी कॉमिक -वर्ल्ड का वो लिंक अपने यहाँ चेप लिया है , आप भी हो आयें ज़रा और शोले की क्लिप्स तो वहाँ बेजोड़ हैं ।
बहू ... हू ... हू ... नॉस्टैलजिक पोस्ट!
ReplyDeleteयम ... यम ... यम ! मौज आई मित्र!
सुस्तराम मेरे सबसे प्रिय कॉमिक चरित्रों में एक था, है और रहेगा. मुनीश भाई ज़रा पता लगाएं दिल्ली के किसी कबाड़ी बाज़ार में पिछले अंक उपलब्ध हैं क्या.
अरे वाह, याद आ गया वह गुजरा जमाना जब मम्मी पापा से छुपा छुपा कर कामिक्स पढी जाती थीं।
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TSALIIM.
-SBA-
वाह भाई मुनीश जी, आप तो 'मधुमुस्कान' पत्रिका के वाकई इतने बड़े मुरीद होंगे मुझे पता न था...इतने अंक अभी भी आपके ख़जाने में हैं...इतना संभाल कर तो शायद मैंने 'लोटपोट' के अंक भी नहीं रखे होंगे जबकि मैं तो १९८२ से २००६ तक, जिसके लिए लगभग २५ साल तक चिम्पू और मिन्नी बनाता रहा हूँ. आप जैसे पाठकों से मिलकर आश्चर्य ही नहीं होता ईर्ष्या भी होती है :-)
ReplyDeleteजोधपुर में दैनिक नवज्योति के पत्रकार, डॉक्टर ने देवेंदर सिंह लालस ने भारतीय कार्टूनिंग पर PhD की थी. शायद वे इस विषय पर शोध करने वाले पहले व्यक्ति हैं. आप जैसे सुधि पाठक ही ऐसे शोधार्थियों के लिए सोने की खान हैं.
'मधुमुस्कान' में मुख्यतः हरीश म. सूदन के कार्टून छपते थे. समय के साथ साथ लोटपोट, मधुमुस्कान, दीवाना... जैसी कार्टून प्रधान हिंदी बाल पत्रिकाओं के सर्कुलेशन में भारी गिरावट के चलते या तो इनका प्रकाशन बंद हो गया या सर्कुलेशन बहुत कम हो गया है. ये पत्रिकाएँ भारतीय चरित्रों के साथ आती थीं, जो शहरी हिंदीभाषी बच्चों में बहुत लोकप्रिय रहीं. आज शहरी मद्ध्यवर्ग परिवारों के बच्चे हिंदी माध्यम के स्कूलों में नहीं जाते. इसलिये इन बच्चों में अंग्रेजी पत्रिकाएँ और अंग्रेजी चरित्र बहुलता से लोकप्रिय हैं. प्रकाशकों और अध्यापकों की भारतीयता में विशेष रूचि नहीं है. इसके चलते अब ये इतिहास का हिस्सा हैं.
आप जैसे पाठकों और धरोहर के सरंक्ष्कों को नमन.
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Deletemai to aaj bhi comics parne ki shukin hu aur kabhi yatra pe niklna ho to comics hi apne paas rakhti hu...
ReplyDeleteaaj bhi aise kai charitra hai jo mujhe bahut prabhawait karte hai...
अमा ये क्या कर दिया? कितने सालों बाण मधु मुस्कान की शक्ल देखने को मिली है... हाय हाय...
ReplyDeleteमुनीश और अशोक भाई...
अगर कहीं इस कॉमिक्स का कोई भी अंक मिलता हो तो मेरे लिए एक ज़रूर रख लीजियेगा. मेरे पास एक भी नहीं है, भाई ने कभी रखने नहीं दिया और बंगलौर में तो खैर क्या मिलेगा.
क्या बात है जी.!....इंद्रजाल के बहादुर भी याद आ गये .....कसम से
ReplyDeleteचुस्तरामों का टैम गया बाऊजी! सुस्तरामयुग के आगमन पे हो जाए आज एक-एक भाईजान!
ReplyDeleteजय हो!
चुस्तराम मुर्दाबाद! आई मीन ही लिव्ज़ इन मोराडाबाड बडी. एन्ड आई टू हेट टीयर्स पुस्पा बेन! आल द टाइम!
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ReplyDeleteLet him rot in Moradabad with his moribund approach buddy, hate tears but love Puspa ben ! Al' d' time !
ReplyDeleteDear Ashok pra ji, Tasleem Saa'b, Mahen,Vinita jee & Doctor Anurag ,
ReplyDeleteThank you all for accompaying me on this trip down the memory lane.
A special thanks to Kaajal ji for sharing his valuable experience with all of us here and sure we have all loved his characters Chimpu and Mini.
भाई वाह मुनीश जी,बड़ा अच्छा लगा एक और मधुमुस्कान पाठक से मिलकर,और पत्रिका की खूबी आपने बखूबी बयान की है,एक अलग तरह की स्याही..बिलकुल सही कहा,मै भी यह बात नोट कर चुका था.मधुमुस्कान के काफी सारे अंक अभी भी मेरे पास सहेज के रखे हैं,आप आइये और मिलकर स्याही सूंघेंगे.
ReplyDeleteनाचीज़ के ब्लॉग का लिंक और कलेक्शन का चित्र प्रकाशित करने का धन्यवाद्.
Munish Ji,
ReplyDeleteFANTASTIC....
यदि आप कभी इस संग्रह को बेचना चाहें तो बताएं, मैं बिलकुल तैयार हूँ :)
इतना अच्छा संग्रह, मैं सचमुच ईष्या करता हूँ आपसे!!!
:))
काश के मैं भी कर पाता ऐसा संग्रह.
~जयंत
Sure Comic World i look forward to meeting you whenever u say and it would be like travelling in time machine back to Nineteen Seventies .
ReplyDeleteDear Jayant i've taken this photo from Comic world and im also longing to see this collection.
You are welcome at any time Munish Bhai.By the way my name is Zaheer and basically belong from U.P.
ReplyDeleteokay Zaheer bhai ! which place in u.p.? is it possible to c u in Delhi someday?
ReplyDeleteMunish Bhai i am from Bareilly.Whenever i will visit to Delhi will be trying to meet you for sure.For further details you can mail me at comik.world@gmail.com or let me know your mail id.
ReplyDeleteहृदय से बधाई
ReplyDeleteApko भी
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