Friday, 2 January 2009
मयखाने में धुंध
हर साल की तरेह इस बार भी इन दिनों दिल्ली में धुंध का ज़ोर है । आज तो दिन दहाड़े ये शहर कुहासे की चद्दर में लिपटा रेंग रहा है, उडानें अटकी हुई हैं और रेल गाड़ियों की आवा-जाही भी मुतास्सिर हो रही है । ऐसे में मरहूम महेंद्र कपूर का वों गीत बरबस लबों पे आ जाता है के'' संसार की हर शै का बस इतना ही फ़साना है, इक धुंध से आना है इक धुंध में जाना है ''। फ़िल्म का नाम भी इत्तेफाक से ' धुंध ' ही था और इसमें अपनी तमाम सादगी के बावजूद ज़ीनत अमान काफी मर्दखोर मालूम देती थीं और मैं तभी से उनके हुस्न का ऐसा कायल रहा के माधुरी, मल्लिका ,बिपाशा और दीगर घटिया हीरोइनों की खूबसूरती की मिसालें देने वालों की अक्ल पे तरस आता है । बहरहाल , अंग्रेज़ी और क्लासिकी मौसिकी से लबरेज़ पुराने सिनेमा का ज़िक्र यहाँ किसी लिहाज़ से मौजूं न होगा सो फ़िर कभी । 'कोहरा' और 'दा फोग' नाम की डरावनी फिल्में भी मौजूद हैं और अपनी ज़िन्दगी में भी कोहरे की रात के कुछ खौफनाक वाकये दरपेश आए हैं । करीब तीन चार बरस सर्द रातों में गुडगाँव-दिल्ली हाई वे स्कूटर पे खूब नापा है और ऐसे मौके भी रहे जब विसिबिलिटी महज़ ५-६ मीटर से ज़ियादा न थी । ऐसे में किसी ट्रक के पीछे चलना ठीक लगता था । ऐसी ही एक रात मैंने ट्रक के पीछे चलने की गरज से handle मोड़ा तो बाल भर की दूरी से मरता बचा चूंकि एक तो वो ट्रक बीच सड़क खड़ा था चल नहीं रहा था और दूसरे उसमें लंबे -लंबे सरिये लदे थे जो कोहरे की वज़ह से नज़र न आते थे । सो ऊपर वाले ने जान बक्शी ,अब सोचता हूँ के क्या इसीलिए के मैं ब्लॉग लिखूं ,हैं जी?
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
इक धुंध से आना है इक धुंध में जाना है "
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर लिखा है आपने....
नया साल, नया जीवन मुबारक।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteजान बची तो लाखों पाये, लौट के मुनीश भाई घर को आए।
ReplyDeleteनया साल बहुत-बहुत मुबारक!!!
और ये सुझाव या ताकीद, जो चाहे समझ लें, एडवेंचर करते रहें, ऊपर वाला तो है ही बचाने के लिए।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteap log ye film yane Dhundh zuroor dekhen aur mujhe dua den.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteनया साल बहुत-बहुत मुबारक
ReplyDeleteधुंध में बच के रहना चाहिये. बल्कि बहुत ज़ायदे मजबूरी न हो तो ठोस और तरल रज़ाईयों के नज़दीक रहा जाना चाहिये. और बाक़ी आप खु़द समझदार हैं.
ReplyDeleteहैप्पी है जी!
really liked the way u have put ur thoughts...expressing ur inner voice always ease ur stress... keep writing..
ReplyDeleteby the way which application r u using for typing in Hindi..?is it user friendly...or have to follow the tables..?
when i was searching for the same...found 'quillapd'.do u use the same and wht is ur opinion abt it...?
this software was provided by this blog portal itself.
ReplyDeletethis software was provided by this blog portal itself.
ReplyDelete