Friday 8 August 2008

ये है आई एस आई

अमेरका के पास सी आई है तो इस्राईल के यहाँ मोसाद , बर्तानिया में Mi6 तो भारत में 'रा' और इसी तरेह पाकिस्तानी खुफिया इदारे का नाम आई एस आई है । १९४७ में भारत पर पहले नाकाम हमले के बाद आस्ट्रेलियाई पैदाइश के अँगरेज़ अफसर आर कैवेट होम की सलाह पर इसे तशकील दी गई । मेजर जनरल की रैंक के ये हज़रत उस वक़्त पाकिस्तानी फौज के डिप्टी कमांडर थे । आई एस आई का दफ्तर पहले रावलपिन्डी और फिर इस्लामाबाद में खोल दिया गया । शुरू में इसका काम कब्ज़े वाले कश्मीर , सरहद के कबीलाई इलाके और भारत से लगे हिस्सों पे नज़र रखना था । ५० की दहाई में फील्ड मार्शल अयूब खान गद्दी नशीं हुए ,सन् ५८ में उन्होंने पाकिस्तान को इस्लामिक मुल्क का दर्जा दिया और डेमोक्रेसी जैसी चीज़ों में यकीन रखने वाले सिविलियन सियासतदानों पर नज़र रखने की जिम्मेदारी भी आई एस आई को दे दी। इस बीच वहां सर उठाने लगे कम्युनिस्टों के जनाज़े उठाने की ज़िम्मेदारी को भी आई एस आई ने निभाया और इस सफाई से के फिर वो वहां दिखने बंद से ही हो गए । फ़िर आई साठ की दहाई । बैनुलक्वामी सियासत में भारत के बढ़ते रुतबे और दलाई लामा को पनाह मिलने से चिढे बैठे ''भाई'' चीन ने सन् ६२ में हमला बोल के भारत की काफ़ी ज़मीन झांप ली । ४७ के बाद ये दूसरा मौक़ा था जब भारत की ज़मीन छीनी गई । पाकिस्तान में फ़िर उम्मीद जगी के ४७ में जिन नदियों को वो न कब्ज़ा सका उनके लिए फ़िर कोशिश की जाए और बात की बात में सन् ६५ की एक शाम उसने हमला बोल दिया । इस बार भारतीय फौज तैयार थी और पाकिस्तान को इस हरकत के लिया काफी ज़लालत झेलनी पडी ख़ास कर इसलिए के एक पूरी हिन्दोस्तानी टैंक डिविजन की कोई ख़बर आई एस आई नहीं दे पाई थी । बहरहाल अयूब खान साहब ने जनरल याहया खान की निगेहबानी में में एक कमिटी बैठाई जिसने आई एस आई का फंड बढ़ाने और जदीद हथियार उसे देने की सिफारिशें पेश कीं । इस बीच पाकिस्तान के पूरबी हिस्से यानि आज के बांग्लादेश में जनता आज़ादी के लिए छटपटाने लगी चूंकि कुल मिलाकर उसकी लोकेशन इतनी अजीब थी की उसके पंजाबी अफसर वहाँ पहुँच कर ख़ुद को पाकिस्तानी मेन लैंड से दूर किसी उपनिवेश में आया महसूस करते थे और खाली वक़्त में मजबूरन बंगाली औरतों का शौक़ फ़रमाया करते थे । हालात ये हो गए की पूरबी बंगाली बड़ी तादाद में भारत की सरहद में जान बचने को भाग कर आने लगे और जब ये गिनती एक करोड़ हो जाने का अंदेशा हुआ तो उस वक़्त के भारतीय फौज के जनरल मानेक शा को पाकिस्तान पर हमले के आर्डर हो गए जिन्हें लेने से उन्होंने बड़ी हलीमी से इनकार कर दिया । क्यों ? ..... ...और इस बीच आई एस आई क्या कर रही थी ? इन सवालों और आगे की बातों पर गौर करेंगे अगली किस्त में ।

8 comments:

  1. अगली किस्त का बेक़रारी से इंतज़ार है.

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  2. जानकारी से भरी अगली कड़ी का इंतजार रहेगा.

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  3. अच्छा और प्रभावी लिखा है।

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  4. आलेख के लिए बहुत आभार.अगली कड़ी का इंतजार.

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  5. शुक्रिया दोस्तो, बात आई एस आई की हो रही है वरना ६५ की लड़ाई और शास्त्री जी की ताशकंद में मौत और सन् ६४ में पाकिस्तान का चीन को कश्मीर का एक हिस्सा दे देना जैसी कई अहम् बातों का ज़िक्र भी यहाँ बनता है.

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  6. This comment has been removed by the author.

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  7. आपसे पूर्ण सहमती के साथ आभार.

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