Tuesday 12 August 2008

ये है आई एस आई --पार्ट टू

तो बात सन् १९७१ की चल रही थी मगर यहाँ चूंकि काफ़ी खून -खच्चर और नदी किनारे की कीचड और बारूद में लपटे इंसानी गोश्त की बू है इसलिए जल्दी क्या है , गाड़ी रिवर्स में लेके ज़रा सन् ७० में चलते हैं। सन् १९७० --
पाकिस्तान में आम चुनाव । रिजल्ट--पूरबी पाकिस्तान में ३१० में से २९८ सीट शेख मुजीबुर्रहमान की पार्टी अवामी लीग के नाम और नेशनल असेम्बली में भी १६७ सीट उसीकी याने '' 'बंगाली पुरबिये' अब पाकिस्तान में राज भी करेंगे'' ???? ... हाँ ! लेकिन ये क्या प्रेसिडेंट याहया खान तो असेम्बली की बैठक ही टाले जा रहे हैं सरकार बनाने का न्योता तो दूर!! हालत इज़ ईक्वल टू रिवोल्ट इन पूरबी पाकिस्तान , पाकिस्तानी फौज का जहाज़ों में भर-भर कर ढाका पहुंचना और बेतहाशा कत्लोगारत । इस सब के बीच अवामी लीग २६ मार्च १९७१ को आज़ाद मुल्क बांग्लादेश का ऐलान करती है । नतीजा और ज़्यादा मार-काट । रिफ्यूजी बन्गदेशियों की तादाद भारत के हाथ-पैर फुला देती है ,वो डिप्लोमेसी के ज़रिये पाकिस्तान से रिफ्यूजी- इन्फलाक्स रोकने के अनुरोध करता है मगर सब बेकार । उधर शेख मुजीब खुल कर भारत से मदद की गुहार करते हैं और पीएमओ हिन्दोस्तानी फौज के जनरल को तलब करता है । जनरल सैम मानेकशा जो पाँच बड़ी लडाइयां लड़ चुके हैं और जापानी लाइट मशीन गन की नौ गोलियों के निशान जिनके सीने पर हैं नरमी से अभी हमला टाल देने को कहते हैं चूंकि ये लडाई कितने मोर्चों पे खुलेगी ये कहना नामुमकिन है , सारा रेल नेट-वर्क टैंक ढोने में लगा तो खेतों में पक कर तैयार गेंहू की फसल जनता तक नहीं पहुँचेगी और फ़िर आने वाली बारिश उसे सडा देगी और अकाल जैसी हालत भी हो सकती है । गर्मी में दर्रों की पिघली बर्फ चीन को न्योता देगी और मानसून में हरहराती ब्रह्मपुत्र ,गंगा और मेघना दुश्मन से भी ज़्यादा जान लेगी । उनकी बात में वज़न है सो बात मान ली जाती है मगर जारी रहती है खुफिया लडाई। जिसमे आई एस आई की ज़िम्मेदारियां हैं --मज़हबी नफरत के बीज बोना, अफवाहें फैलाना और सड़कों ,पुलों को नुकसान पहुँचाना , नकली करेंसी बाज़ार में भर देना और नफरत फैलाने वाले झूठे रेडियो ब्रोड- कास्ट ! ,पाकिस्तान ख़ुद भी सर्दियों के इंतज़ार में था चूंकि मैदानी इलाके में कोई भी फौज सर्दी में हमले पसंद करती है । वजेह, एक तो रसद देर तक चलती है, दूसरे पानी के जरासीम से बीमारी का खतरा कम रहता है , हथियार लेकर मूव - मेंट आसान रहता है,घाव और लाश सड़ने के अंदेशे कम रहते हैं और सबसे अहम् बात प्यास कम लगती है चूंकि जंग में पहला दुश्मन...... प्यास ही होता है !
देखते ही देखते दिसम्बर ७१ की वो रात भी गई जिसका इंतज़ार ख़ुद मानक शा को था यानि पाकिस्तानी पहल का शेख मुजीब की मुक्ति वाहिनी में पाकिस्तानी फौज के बंगाली अफसरों और सिपाहियों के मिलने से बौखलाए पाकिस्तान ने भारत पर हवाई हमले किए और देखते -देखते भारत की पहली पैरा ट्रूप स्क्वाड्रन बांग्लादेश में उतर चुकी थी जिसकी कमान जयपुर के साबिक महाराजा कर्नल भवानी सिंह के हाथों में थी फ़िर जो हुआ वो दुनिया ने देखा और बरतानवी वार-कॉलेज के करिकुलम का आज वो हिस्सा है चूँकि महज़ तीन हफ्ते चली खौफनाक लडाई के बाद जनरल नियाज़ी का तमंचा मेज़ पे धरवा कर ईस्टर्न कमांड के जनरल अरोड़ा ने सरेंडर पेपर साइन करवा लिए थे सेकंड वर्ल्ड वार के बाद ये दुनिया का सबसे बड़ा फौजी सरेंडर था .....एक लाख फौजी जवान और अफसरान लड़ाई में मरने वाले तीनों देशों के लोगों की तादाद १० से तीस लाख के बीच कहीं भी ! यूँ तो हर लड़ाई बुरी होती है मगर कहावत है ....a short war is a sweet war. चूँकि लड़ाई जितनी खिंचती है उतना ही उसका रोमांस भी जाता रहता है , जिन्हें दिखाने को इंसान लड़ने जाता है जब वही एक-एक कर कूच करते जाते हैं तो उसके हर जज़्बे का कड़ा इम्तेहान होने लगता है और खरा उतरना मुश्किल हो जाता है । बहरहाल एक साथ कई मोर्चों ,12 मासी मलेरिया से भरे जंगलों की इस लड़ाई के बाद हुआ शिमला समझौता और पाकिस्तानी फौज की रिहाई जबकि बदले में भारत कश्मीर की सारी समस्या से उसी वक़्त निजात पा सकता था और सैम बहादुर को ये ग़म आखीर तक रहा

3 comments:

  1. सही कह रहे हैं.

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  2. बहुत अच्‍छी जानकारी है

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  3. bahut kuch purana padha suna hai..maga r aapkey likhey me pravaah hai..bandhta hai..

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