Thursday 7 August 2008

ये आई एस आई क्या बला है ?

पाकिस्तानी खुफिया इदारे आई एस आई का भारत से लगाव जगज़ाहिर है । यहाँ तक कि अब वो बैरूनी मुल्कों में वाके हिन्दोस्तानी प्रोपर्टी से भी इज़हारे मोहब्बत से बाज़ नहीं आता ।शायद उसका मानना ये है कि कुछ नया बनाने के लिए पुराने से निजात ज़ुरूरी है और इस तरेह वो तो भारत कि दरअसल मदद कर रहा है । भारत में हर विस्फोट के बाद' आई एस आई' का नाम लेना तो खैर एक रवायत सी रही है, अब तो अमरीका भी पहली दफे ये मान गया है कि हाल में काबुल में हिन्दोस्तानी एम्बेसी को उड़ाने की साज़िश आई एस आई की ही थी । इस हमले में ४ भारतीयों समेत कुल ५८ लोग मरे । इस से पहले वहां काम करने गए इंजीनियरों और दीगर कामगारों को भी उसने अगवा कराया है जिनमें से कुछ कभी घर नहीं लौटेंगे । लेकिन ये बड़े मज़े की बात है कि इस एजेन्सी के बारे में भारत के लोग काफ़ी कम जानते हैं जबकि मग्रिबि ममालिक में इस पर काफी रिसर्च हुई है जिसे साझा कर लेने में क्या हर्ज़ है ? लेकिन पहले ज़रा....फ्लैश- बैक ! ( आई एस आई का कोट ऑफ़ आर्म्स ) १९४७ में आज़ाद होने के बाद पाकिस्तान को जो बात सबसे ज़्यादा साल रही थी वो ये के जो भी इलाके उसने चाहे उसे मिले, जहाँ भारत की तरेह हर मौसम और मिजाज़ के पहाड़, जंगल, सहरा, मैदान और यहाँ तक के मानसून फॉरेस्ट भी थे । समंदर का साहिल भी उसे मिला और बलखाती पहाड़ी नदियाँ भी मगर..मगर..इनमे से कोई भी नदी ऐसी न थी जिसे वो पूरी तरेह अपना कह सके चूंकि इन सबका सोता तो सरहद पार भारत में था । उसे अपनी भयंकर भूल का अहसास हुआ और उसने सबसे पहले जिस काम को अंजाम दिया वो था कश्मीर पर हमला ! उसकी तरफ़ से लड़ने वाले कबायलियों से अँगरेज़ भी थर्राते थे और उसने कश्मीर का काफी हिस्सा दबा लिया जिसे वो अभी तक आज़ाद कश्मीर कहता है । मगर किसी भी नदी के दहाने तक वो नहीं पहुँच सका और इसीलिए उसका ये हमला उसकी हार क़रार दिया गया बावजूद इसके की काफ़ी भारतीय ज़मीन उसने कब्ज़ा ली थी । आज भी वो उन्हीं नदियों के सोते के लिए कश्मीर पर हमले करता है जबकि ज़ियादातर चुगद लोग ये मानते हैं की "वो कश्मीर को तो जी उसकी खूबसूरती के लिए चाहता है "!मज़हबी नफरत को तो वो बहुत देर से वहां पनपा सका लेकिन आज कश्मीर जिस तरेह का मज़हबी मसला लगता है वो basically था नहीं । हालांकि इस तरेह की नदियों को लेकर बैनुलक्वामी कन्वेंशन के तहत भारत कभी उसका पानी न तो रोक सकता है और न ही उसने कभी कोशिश की है लेकिन चूंकि पाकिस्तान की तमाम खेती-बाड़ी और इंडस्ट्री यहाँ तक के प्लास्टिक के बोतलों में पीने का पानी भरने के उसके प्लांट भी सिन्धु नदी पर टिके हैं इसलिए वो हरवक्त भारत पर पानी को लेकर शक करता है और सिर्फ़ कश्मीर को हड़पने के जाल दिन रात बुना करता है । आई एस आई के तमाम किस्से इसी मुद्दे के हिस्से हैं । आपको मज़ा आया हो तो आगे सुनाऊँ या फ़िर इस बार का पन्द्रेह अगस्त भी हर बार की तरेह ''मेरे देश की धरती.........'' गा-बजा कर मनाने का इरादा है ! ये तस्वीर इस्लामाबाद में मौजूद आई एस आई हेड क्वार्टर की है !

11 comments:

  1. रोचक जानकारी थी। इसी भाषा में लि‍खें तो तो हर बार पढ़ूंगा।

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  2. धन्यवाद इस जानकारी के लिये. अगर आप बताते रहे तो हम भी सियासत थोड़ी बहुत समझ लेंगे.

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  3. Dear Cyril n Jitendra,
    These r just bare facts with no malice towards anyone and i think all Indians must know the root 'cause of Indo-Pak differences, which is not religion at all.

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  4. मुनिष भाई पाकिस्तान को भारतीय मुसल मानो से कोई लगाव नही, बस इन्हे उक्सा कर, ओर फ़िर आप के लेख वाली स्थिति पेदा करना चाहता हे,इन के मन मे चोर ह्र इसी लिये भारत को शक की नजर से देखता हे, धन्यवाद एक सुन्दर लेख के लिये

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  5. अरे- जिस चीज़ पे दो मुल्कों की जवानी, जूनून और वफ़ा इतने साल से फ़ानी है , उसकी जड़ बस सिर्फ़ पानी है ?

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  6. जोशी जी एक मुल्क के दो हिस्से होते हैं और वो ऑफिस फर्नीचर के बंटवारे तक पे कहा सुनी करते हैं और फ़िर जिस देश में बैठने को कुर्सियां नहीं हैं अचानक वो क्या बात आती है के वो एक मिलिटरी- कैम्पेन पे अमादा हो जाता है ! सिन्धु , झेलम , रावी , व्यास और सतलुज के वो स्त्रोत जिन्हें वो छल से न ले सका उन्हें बल से उसने लेना चाहा , बाकी सब वाहियात किस्से हैं जिनमें बहुत सी तारीख और किरदारों के नाम दर्ज हैं । पारुल जी और राज भाई अपने यहाँ शिरक़त की ,शुक्रिया साहेब.

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  7. Good, educating post. Your follow up comment on religion is apt and important and should have been part of the main post.

    Good work!

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  8. आपने मयखाने के नाम से भरमा दिया.
    आए तो थे ज़न्नत लूटने जिन्नों से मिलवा दिया! (अनुराग शर्मा)

    एनीवे, आई एस आई के बारे में जानकारी का शुक्रिया!

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  9. आपने मयखाने के नाम से भरमा दिया.
    आए तो थे ज़न्नत लूटने जिन्नों से मिलवा दिया! (अनुराग शर्मा)

    एनीवे, आई एस आई के बारे में जानकारी का शुक्रिया!

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  10. Bhai dharma ki baat to yahaan kahin aati hi nahin aur donon mamalik ka zahin shahri is baat ko khoob samajhata hai aur ek doosre ki fanosaqafat ka ehteram bhi karta hai.Sawal ye hai ke unke paas fauj hai to hamare paas bhi hai.Unke paas khufia agency hai to hamare paas bhi hai.Unke paas makkar aur khudgharz siyasatdan hain to hamare paas bhi hain aur unse ziyada hain.Aur ye bhi tay hai ke woh apni cheezon ka poori tarah istemal karenge aur hum apni.Ab mudda yahi hai ke is shaitani khel mein kaun kitna fitnaandaz hai.Baharhal mukhtasar kahein to donon mulkon ke aise siyasatdanon ke munh kale karne ki zaroorat hai....Aur ye khushfahmi agar haqeeqat me badle to shayad amna ki raah ustavar ho jaye......
    Lekin jab tak aisa nahin hota aap to apni kahani chaloo rakhiye hi.

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