Sunday 23 March 2008

फुरसत के कुछ लम्हे अब यहाँ गुज़ारने का इरादा रखता हूँ। साथ में अगर हमप्याला, हमनिवाला,हमसफ़र, हमराज़ हों तो मज़ा और होता है मगर कभी न भी हों तो यहाँ कौन रोता है ! अगर आपको यहाँ की फिज़ा रास आए , सोहबत हमारी भाये तो चले आया कीजिये बेतकल्लुफ़ हो कर । पीने का कोई कम्पल्शन नहीं है मगर .....किस्से- कहानियों , आवारागर्दी और अड्डेबाजी से अगर आपका कोई नाता नहीं है तो फ़िर ये जगह ,जो बहुत जल्द बदनाम होने वाली है ,आपके मतलब की नहीं है ! आप अपने साथ किसे लायें किसे न लायें ये समझना आपका काम है मगर....ला सकें तो कभी उमर-खय्याम , कभी बच्चन ,कभी नीरज तो कभी ख़ुद में बैठे गालिब ,मोमिन और दाग़ को लायें ,इनायत होगी । शाना-ब-शाना क़िस्से भी चलेंगे और लतीफों के अनार भी छूटेंगे । आप तशरीफ़ तो रखिये सरकार ।

6 comments:

  1. बधाई - "क्या मयस्सर होगी उतनी मयखाने में........ ?" - पहला हमप्याला
    [please take out word verification- please]

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  2. ये छोटे-छोटे तग़ैय्युर,ये ओछे-ओछेवार
    बता रही हैं ये बेचैन करवटें ए दोस्त!
    कि जल्द एक बड़ा इन्क़िलाब आएगा ...

    मुनीश भाई, चलिये हम आवारों के लिए आपने एक और अड्डा बना लिया. बधाइयां साब!

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  3. i want to get it inaugurated by u sir ji.

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  4. लो मैं भी आ गया! थोडी देर हो गई मगर एक पटियाला तो मिल ही सकता हैं! क्यों हज़रात-

    ऐ खुदा! यारों के जाम फुल रक्खियो
    ये होश में वहशी हैं, इन्हे टुल रक्खियो

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