Tuesday, 8 October 2013

हो जिसकी ज़ुबाँ उर्दू की तरहाँ...

बड़ी मीठी और तहज़ीब से लबरेज़ जुबाँ है साहब और खासकर तब जबकि आला दर्जे के दानिश्वर समझाने की
 
गरज से सीधी-सरल बहती सी अदा से बात रखते हों । अभी हाल में यूँ ही सायबराबाद के एक सफ़र में ये मोती
 
मिल गया । हुकूमते बरतानिया के ताव्वुन से चलने वाले बीबीसी और सरहद पार के आवाज़ टीवी की पेशकश है
 
 । मैं तो सुन कर सन्नाटे में आ गया के मानो सिलड़ी का रायता छक लिया हो जग भर । क्या आपको भी ऐसा
 
 ही कुछ-कुछ होता है ? अगर हाँ तो ऐ क़द्रदाने सुखन शर्मइयो नहीं , कह दीजो यहीं कमेंट के बक्से में ।
 

2 comments:

  1. Aap Ki Kavita Achhi Lagi, Aap Bhaut Achha Likhte Hain, Main Thoda Aadhunikta Ki Kavita Bhi Padhana Chahata Hoon, Asha Hai Ki Aap Jaldi Hi Prastut Karenge.

    Thank You.

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  2. Thanks for sharing such a wonderful story

    self publishing India

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