Friday, 20 July 2012

काका के जाने पर...

नहीं कुछ नहीं बदला है , न तो कोई कमी ही हुई है ज़मीं पर या बहते हुए पानियों में हाँ शायद इज़ाफ़ा हुआ हो तो हो ख़लाओं में । क्या मालूम लेकिन याद रहेगा वो डाकिया और वो अपाहिज सिपाही जिसे किसी नामुराद, भड़वे न्यूज़ चैनल ने याद ना किया लेकिन हम हैं काका आपके क़द्रदान हम नहीं भूले अब तलक । आमीन, जहाँ भी हो आपकी आत्मा शान्ति पाए , शान्ति पाए, शान्ति पाए -


















3 comments:

  1. Replies
    1. अब जाने कौन हैं आप लेकिन हमारे शरीक़े ग़म तो हैं ही जनाब एबीसीडी साहब । शुक्रिया के ज़हमत की और हमारी बात को समझा ।

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    2. आपने हमारे ग़म को समझा है सो क्या कहें और क्या कह सकते हैं लेकिन ऐसे लोग अब नहीं होंगे फिर इतना तो तय है ।

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