Thursday 16 February 2012
मयख़ाने में ऊँचे लोग
के. बालचन्दर के उपन्यास मेजर चंद्रकान्त पर आधारित इस हिन्दी ब्लैक एंड व्हाइट का तक़रीबन सारा क्रू दक्खनी है , डायरेक्टर बंगाली है । मुख्य भूमिकाओं में सीमान्त प्रान्त का एक, मध्य प्रदेश का एक और बंगाल का एक है । चलती हुई ख़नकदार हिन्दी का क्या तो इस्तेमाल है । प्रेम कहानी का सिर्फ़ एक रेफ़रेंस भर है। इस क्राइम-थ्रिलर में महज़ एक अदाकारा फ़्लैशबैक में शायद कहीँ दिखती है ...असल में ये सिर्फ़ और सिर्फ़ नायकों की फ़िल्म है । यहाँ अशोक कुमार का एक अलग ही रूप दिखता है एक अन्धे मेजर का जो बर्मा फ्रंट की लड़ाई के हैंग ओवर में है ...देख नहीं पाता लेकिन अब भी वर्दी में रहता है अपने दो बेटों के साथ । उसूलों की लड़ाई की ये कहानी जाने कब देखी थी ? कैसी-कैसी नायाब फ़िल्में बनी हैं एक ज़माने में ! जब राजकुमार ने जानी कहना सीखा भी ना था और आज फिर देखने लायक़ है इसलिए कि ये बताती है कि आज हमारी हिन्दी को हिन्दी भाषियों ने ही क्या बना दिया है......
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बहुत रोचक फ़िल्म थी। शुरुआत का सस्पेंस, जाग दिले दीवाना, ज़बर्दस्त अभिनय और सुन्दर सम्पादन - वाकई ऐसी नायाब फ़िल्में कम ही बनती हैं।
ReplyDeleteजी हाँ और आम बंबइया फ़िल्मों से कितनी अलग । धन्यवाद देखने के लिए ।
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