Monday 30 January 2012

...क्योंकि हिन्दी अमिताभ बच्चन की भाषा है !

हाल ही में तोक्यो विदेशी भाषा विश्वविद्यालय में दूसरा अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन संपन्न हुआ जिसमें शाम के समय हुए सांस्कृतिक कार्यक्रमों का ज़िक्र पिछली दो पोस्टों में कर चुका हूँ । आयोजन सुन्दर रहा इसमें कोई संदेह नहीं । लेकिन, मित्रों के और मयख़ाने के सदाबाहर गाहकों के ताने-उलाहने भरे संदेश लगातार मिल रहे हैं । कुछ ने तो ये तक क़सम ली है कि वो यहाँ आना ही बन्द कर देंगे, टिप्पणी तो दूर की बात है । मैं उनकी क़समों को ज़्यादा सीरियसली नहीं लेता...सच्चे मयक़श होंगे तो कमबख़त जाएँगे और कहाँ ? यहीं मरेंगे साथ-साथ लेकिन फिर भी उनकी शिक़ायतों का जवाब तो बनता है । राजेश धर्माधिकारी लिखते हैं कि आपने हिंदी सम्मेलन की जानकारी अंग्रेज़ी में क्यों छाप मारी और पूनम तलरेजा को शिक़ायत है कि हिंदी पर जो गंभीर विचार-विमर्श हुआ , उसकी बाबत कुछ नहीं लिखा है तो इन्हें और अन्य शिक़ायती बन्धुओं के लिए मेरा स्पष्टीकरण यही है कि यहाँ तोक्यो में अनेक भारतीय रहते हैं जिनमें से कई दक्षिण भारतीय हैं जो हिन्दी नहीं पढ़ पाते और फिर स्थानीय जापानी मित्र भी हैं जो हिन्दी नहीं पढ़ पाते । ताकि इन सभी को यहाँ प्रचलित सामुदायिक मेलिंग ग्रुप्स के ज़रिए हिन्दी के शानदार आयोजन की बानगी मिले बस इसीलिए अंग्रेज़ी में लिखा गया । अपनी पोस्ट्स को इन ग्रुप्स में लिंकित किया और सभी को सूचना मिली और सभी ने खुशी का इज़हार भी किया है । रही बात गंभीर विचार-विमर्श की तो निःसंदेह हंगरी,डेनमार्क,अमरीका,त्रिनिदाद और मॉरिशस आदि अनेक देशों के हिन्दी प्रेमियों ने अपने विचार यहाँ रखे । भारतीय विद्वानों ने भी अपना पक्ष रखा । हिंदी के अतीत के गौरव-गान के अलाव वर्तमान और भविष्य को लेकर खासी चिंता भी उभर कर आई और कुछ सत्रों का श्रवण लाभ मैंने भी,बतौर रिपोर्टर, प्राप्त किया लेकिन हिन्दी के भविष्य को लेकर कोई चिंता मैं कभी महसूस नहीं करता हूँ । मेरा मानना है कि हिन्दी हमेशा खूब फूलेगी-फलेगी । आज से पाँच साल पहले हिन्दी के टाइपिस्ट तक मिलने दूभर थे लेकिन आज तो हिन्दी ब्लॉग जगत में दिग्गज हस्तियाँ खुद ब खुद हिन्दी में टाइप करके अपनी भावनाओं को जन-जन तक पहुँचा रही हैं । कोई इटली में बैठा है तो कोई कनाडा में, कोई रतलाम में है तो कोई इलाहाबाद में, कोई नैनीतालन है तो कोई विलायती , कोई अमरीका में है तो कोई मुनीरका में ।कोई अरब में है तो कोई जापान में ।यहाँ तोक्यो में आईटी क्षेत्र के कई भारतीय विशेषज्ञ हैं,शिक्षा जगत् के लोग हैं जिन्होंने खुद, बग़ैर किसी लोभ या स्वार्थ के एक हिंदी सभा बना रखी है जिसमें वो सब हिंदी में बोलते-बतियाते हैं जबकि सभी काम-काजी अंग्रेज़ी दाँ लोग हैं मतलब ये कि हिन्दी छाई हुई है और उसके लिए चिंता की कोई ज़रूरत नहीं । हिन्दी का परचम फ़हरा रहा है शान से और क्यों ना हो ? हिन्दी, आखिर अमिताभ बच्चन की भाषा है ! सुनने लायक है, तो फिर लगाइए चटका--

इत्तेफ़ाक से ये आपकी और मेरी भी भाषा है ।इस समय मैं यहाँ जापान के होंशु द्वीप में स्थित राजधानी तोक्यो में बैठा टाइपिया रहा हूँ और आप निःसंदेह दुनिया के किसी और कोने में मुझे पढ़ पा रहे हैं हिन्दी में । यही सच्चा विश्व हिन्दी सम्मेलन है जो चल रहा है रात-दिन , सुबहो-शाम और इसमें एक प्रतिनिधि आप हैं तो फिर सोच क्या रहे हैं कुछ टिपियाइए ना सरकार ।

8 comments:

  1. जब मैंने विलायत लिखा तो आप ही का ख़्याल था । देखिए साधुवाद भी आन पहुँचा । बलिहारी ।

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  2. @आप निःसंदेह दुनिया के किसी और कोने में मुझे पढ़ पा रहे हैं हिन्दी में ।

    मुनीश भाई, आपको निःसंदेह पढ सका मगर जब विडियो क्लिक किया तो निम्न सन्देश आ गया:
    The uploader has not made this video available in your country.
    Sorry about that.

    वैसे हिन्दी के प्रयोग, विकास (और सेवा) के बारे में मेरी विचार भी कमोबेश आपसे मिलते हैं।

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  3. संयुक्त राज्य अमरीका में अहर्निश ऑनलाइन विश्व हिन्दी सम्मेलन की कमान संभाले भाई अनुराग जी को नमन है ।

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  4. Munish Jee,

    Pritish Nandi jee ne recently likha hai ki "Less than 15 per cent of email is useful to people who receive them, says a recent study.And the average person spends 20 hours a week tirelessly answering them. A former French finance minister, now CEO of a 6 billion euro IT company, was recently in India telling us how he has sworn to run his company without internal emails. He wants his 80,000 staffers to stop emailing and replace it with more efficient social networking tools. Tools more polite, personal, friendly. You needn't trawl through thousands of mails to find the one you need to read."

    In this era of loads of communication, I love blog. MAYKHAANA is a place which is available at the convenience of the readers (without bothering them with SMS, missed call, spam mail, etc.). This World Wide Web and MayKHAANA will remain in this world ...zindagi ke saath bhi....zindagi ke baad bhi !!!

    May be 200-300 years after, future generations will be able to research about life and times in this era with the help of bloggers like you!

    Akhilesh

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    1. लीजिए सोच ही रहा था कि ऑसट्रेलिया, इटली और अरब के ब्लॉगर कहाँ रह गए कि आपका
      संदेश आ गया । प्रो़फेसर साब आप ब्लॉगर ना सही , ब्लॉग जगत के तो क़द्रदाँ हैं और आप के नाते संयुक्त राष्ट्र संघ यानि सारी दुनिया की हाजरी और लग गई । आते रहिए जनाब ।

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  5. Munish Ji
    very nice ,it is difficult to say that Amitabh made KBC or KBC made Amitabh both are wounderful Thanks for this beautiful BLOG.Ofcource Amitabh speaks Hindi in his own style and through Maykhaana we are also enjoying .Thanks
    Sandeep Sharma

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  6. संदीप जी तारीफ़ उस खुदा की जिसने ये जहाँ बनाया , आप आए बहार आई ।

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