................ एक छोटी से नदी मिलती है (जी हाँ ये नहर
नहीं है) जिस पर झुकी हुई साकुरा की शाखें अपनी नर्मो-नाज़ुक पंखुरियाँ बरसा
रही थीं .उस रोज़ पानी में तैरती ये चैरी के फूलों की पंखुरियाँ बड़ी दिलकश
मालूम देती थीं सो आपके लिए झटपट ये वीडियो उतार लिया. .कुदरत अपना कहर
बरपाने के बाद मानो ज़ख्मों पे मरहम लगा रही हो . ये वीडियो कोई दस दिन
पहले का है और अब तो यहाँ तोक्यो में बहार अपने उरूज पे है और कहते हैं ये
काफी अरसा रहने भी वाली है. जिधर देखिये फूल ही फूल या संतरों से लदी शाखें
.ऐसा कोई फूल नहीं जो भारत में न मिलता हो, ऐसी कोई ख़ूबसूरती नहीं जिससे
कुदरत ने हिन्दोस्तानियों को मरहूम रखा हो लेकिन जनाब रख-रखाव भी तो कोई
चीज़ है और इस मामले में जापानियों का कोई तोड़ नहीं . एस्थेटिक्स या
सौंदर्यशास्त्र की ऐसी समझ और उसपे लोगों की ख़ामोश तबीयत तासीर ....कहना
पड़ता है साहेब खुद से ये कहाँ आ गए हम .
प्रेम भाव से पूरा विडियो देखें और मेरे लिए कामना, शुभकामना करें प्रभु से ....हरी ॐ !