Monday, 21 June 2010
कभी एक गंभीर ब्लौगर हुआ करता था मैं भी ....
मैंने बतौर ब्लौगर गंभीर विषयों पर लिखने से शुरुआत की , मग़र ब्लौग-जगत का टोटल मिज़ाज और कैफ़ियत टटोलने के बाद अपनी खुशी से यू-ट्यूब पे उतर आया और आज मैं "सफल ब्लौगर''न सही काफी खुश ब्लौगर ज़रूर हूँ । मैं ब्लौग पे मस्त-मस्त गाने बजाता हूँ और जो ऐसा नहीं करते उनपे तरस खाता हूँ । असल में ब्लौगिंग मनोरंजन के एक नए साधन से बढ़ कर कुछ नहीं और ये प्रिंट की जगह कभी नहीं ले सकती . ज़रा देखिये शुरू में मैं क्या लिखता था ! 'आग का दरिया' शीर्षक से प्रकाशित ये पोस्ट 13 अगस्त ,२००८ की है । मैंने जो तब कहा था वो भारत के रणनीति -विशेषज्ञ अब खुल कर कह रहे हैं .........
'आग का दरया' ये हमारे यहाँ की मशहूर नाव्लिस्ट कुर्तुलुन आपा के नाविल का भी नाम है जिसे एक ज़माने में गियान पीठ अवार्ड से नवाज़ा गया । नाविल में ज़ाहिर है 'आग का दरिया ' एक सिम्बोलिक इमेजेरी है ,मगर एक असल आग का दरया भी है जिसका के नाम दर्याए -सिंध है जो इस नक़्शे में एक नीली लकीर खेंच के दिखाया गया है । अगर आप अक़ल के अंधे नाम नैनसुख नहीं हैं तो साफ़ समझ सकते हैं के ये पाकिस्तान की लाइफ लाइन क्यों है ? ये पाकिस्तानी नक्शा, जिसमे के पड़ौसी कब्ज़ाये हुए कश्मीर को अपने वालिद की जागीर
दिखाता है, हमें ये साफ़ बताता है के बाकी कश्मीर पे उसकी नीयत डोलने की असल वजेह क्या है और तमाम ''शामे ग़ज़ल '' और ''शब् ऐ कव्वालियों '' ,जिनके फ्री- पास झांपने के लिए दोनों तरफ़ के लोग काफ़ी बेचैन रहते हैं , से कोई सुधार क्यों नहीं आ सकता । सरकारी खर्चे से लोग पाकिस्तान(जो कि सिर्फ लाहौर होता है ) घूमने के बाद लौटकर लिखते हैं बिल्कुल वही लोग ..,वही खान -पान और वही पहेरना ओढ़ना और तो और वही गालियाँ भी ,हैरत है फिर भी क्यूं लड़ते है? ये पोस्ट उन्हीं के लिए है ।
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ऐसा क्यूँ कहते हैं ! गाना सुनने वाले क्या गंभीर नहीं होते ? सरकारी खर्चे से अमन का ठेका छोड़ा जाये तो उस अमन की उम्र क्या होगी!!! उसमें जल्दी गड्ड़े और खड्ड़े दोनों होंगे।
ReplyDeleteमतलब पाकिस्तान को अपनी जड यानी दरिया ए सिंध को सलामत रखने के लिये कश्मीर कब्जाना पडा।
ReplyDelete"धाँसू पोस्ट...जनाब"
ReplyDelete@नीरज -- इसीलिए वो कश्मीर को हड़पना चाहता है . दरअसल सारी नदियाँ यहीं से वहां जाती हैं और ये सब सिंध में मिल कर समंदर में गिरती हैं . अब भला बताइए सिंध क्या कोई देने की चीज़ है ?' सिन्धु नदी संधि' के तहत पानी तो उसे बराबर मिल ही रहा है !
ReplyDeleteIn order to be serious, it's not at all necessary to look and sound serious. In fact, saying serious things in a lighter vein leaves a stronger impact than saying serious things with a long face and serious manner. I think you are arriving at the right blend. So, keep going.
ReplyDeleteअभी भी ब्लोग्गर ही लग रहे हो
ReplyDeleteकिस भ्रम हैं जनाब कि आप भी गंभीर हुआ करते थे .............करते थे से आपका मतलब । कहिए कि थे हैं और रहेंगे ही । आप कभी बिना गंभीर हुए रह ही नहीं सकते । पिछली सारी पोस्टें पढी हैं मैंने और आपकी एक अलग ही शैली और दिलचस्प विषय है ..बिल्कुल मौलिक । आज भी देखिए न आपने इस पोस्ट में कितनी गंभीरता से सब कुछ कह डाला । हां भारत पाक की खींचतान के पीछे उन पांच नदियों का पानी को हथियाने की नीयत महत्वपूर्ण मुददा रहा है
ReplyDeleteमैने पडा था
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सन्सार के होट्ल / मयखाने मे कोई किसी को ’ सर्व ’ नही कर सकता /
अप्नी मदद आप करनी होगी /
हम लोग तो सिर्फ़ अच्छे वेटर की तरह लोगो के साम्ने ट्रे रख सक्ते है, जिस्की जो तबीयत हो,खुद ही उटा ले और खाता रहे /
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