Friday, 30 May 2008
किस्सा घुड़ -सवार फिरंगन का : दूसरी किस्त
Major अपने कॉल का पक्का निकला और लेडी गौडिवा के बुत और उस नेक औरत की याद में निकलने वाले जुलूस की तस्वीरें उसने हमें भेज दी हैं । अफ़सोस वो तस्वीरें हम यहाँ न दे पायेंगे । दरअसल इस जुलूस में घोडे पै सवार होने के लिए हर साल कोवेंट्री शहर की खवातीन में होड़ मची रहती है चूंकि ये वहां के folk tradition का हिस्सा बन चुका है और इसे अच्छी खासी T.V coverage और स्पांसर - शिप हासिल हो जाती है । लेडी गौडिवा ने जो कुछ अपनी अज़ीज़ रियाया की बह्बूदी के लिए एक मजबूरी के चलते ,अपने कमीने शौहर के कहे पे किया , कुछ बरतानवी लौंडियाँ आज वही इस जुलूस में सस्ती शोहरत हासिल करने की खातिर करने पे अमादा हैं । सो बाज़ दफे उनकी पोशाक इस कदर झीनी और बराए नाम रह जाती है के देखने वाले उनके साज़-समान के नज़ारे लूटते हुए छींटा कशी और फबतियों पे उतर आते हैं । उस नेक खातून का मकसद भुला कर आज इस मेले को जिस्मानी नुमाइश का मंज़र बना देखा जाता है ,सो हम इस मेले की कुछ बरस पहले ली गई तस्वीरें छाप रहे हैं ,जब की हालात इतने संगीन न थेऔर बरतानवी खवातीन ने हया का दामन छोड़ा न था !
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बखत चेन्ज होने में बखत ही कितना लगा करे है बाबू साहब! ... वो साल दूसरा था ये साल दूसरा है ...
ReplyDeleteअच्छा हुआ की तस्वीरो के साथ आपने इसका विवरण दे दिया, नही तो लोग कुछ और समझ बैठते. बाकि अशोक जी ने कह ही दिया... वो साल दूसरा था ये साल दूसरा है
ReplyDeleteRajesh ji im just following the path shown by Ashok bhai!
ReplyDeleteये तो एक विडम्बना है ही हम मानवों की
ReplyDeleteहर अच्छी चीज का ग़लत इस्तेमाल हम करना जल्द ही सीख जाते हैं.
सच है वक्त के साथ साथ सब कुछ बदल जाता है, यहाँ तक कि इस जलूस का मकसद भी.
ReplyDeleteyes i agree sir ji!
ReplyDeleteआपने सचमुच उन छोटे भगवानों को आईना दिखाया है जो हमेशा बैरूनी ममालिक की चार किताबों के नाम और हिंदीवालों के दीवालियेपन का रोना रोते हैं. चूँकि आप भी हिंदीवाले ही हैं इसलिये ऐसी पोस्टें ब्लॉगैतिहासिक महत्व की होंगी.
ReplyDeleteye to apka badappan hai.
ReplyDeleteमुनिष जी
ReplyDeleteभई वो मेजर है नेता नही अपने बात के पक्के तो होंगे ही रहा सवाल इस जुलुस का तो हर निति और नियम को समय के साथ माडरेशन कि जरूरत होती है
मुनिष जी
ReplyDeleteभई वो मेजर है नेता नही अपने बात के पक्के तो होंगे ही रहा सवाल इस जुलुस का तो हर निति और नियम को समय के साथ माडरेशन कि जरूरत होती है
right deepak!
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