चिड़ी के ग़ुलाम
हुकुम के अट्ठे
और
उल्लू के पट्ठे
कह रहे हैं कि:
आपात्काल चल रहा है !
राष्ट्रचीते ,
कचिया पपीते
और
बारूद के पलीते
कह रहे हैं कि:
मधुमास चल रहा है !
मैं बोल पा रहा हूँ कि:
बस श्वास चल रहा है !
ये प्रदूषण मुझको खल रहा है ।
ये हरामी शहर दरअस्ल जल रहा है
# प्रदूषित कविता
हुकुम के अट्ठे
और
उल्लू के पट्ठे
कह रहे हैं कि:
आपात्काल चल रहा है !
राष्ट्रचीते ,
कचिया पपीते
और
बारूद के पलीते
कह रहे हैं कि:
मधुमास चल रहा है !
मैं बोल पा रहा हूँ कि:
बस श्वास चल रहा है !
ये प्रदूषण मुझको खल रहा है ।
ये हरामी शहर दरअस्ल जल रहा है
# प्रदूषित कविता