Friday, 3 August 2012

एक जज़ीरे पे मौत

शाकाल की लाश अरब सागर की मछलियाँ कब की खा चुकी हैं और वो मछलियाँ भी जाने कब की और मछलियों की खुराक बन चुकी होंगी । कुल मिलाकर डीसीपी शिव कुमार की मौत और उनकी मौत का बदला चुके कई बरस बीत चुके हैं मग़र जाने क्यों जब से प्रशांत महासागर के इऩ टापुओँ पे भटक रहा हूँ मुझे अक्सर डीसीपी के पीछे भागते खूँख्वार कुत्ते याद आते हैं । हालांकि यहाँ तो दूर तक ऐसा कुछ नहीं है...कुछ भी तो नहीं है लेकिन पता नहीं क्यों भारत का ख्याल आते ही वो  वाक़या रह-रह के कौंध जाता है जो मैंने बचपन में देखा था कहीं। पता नहीं क्यों मुझे लगता है कि डीसीपी शिव कुमार के साथ हुआ वो वाकया दरअसल इन दिनों भारत में चल रहे संघर्ष का समुच्च्य है । एक तरफ़  ईमानदारी से रहने लायक, जीने लायक हालात  की चाह रखने वाले लोग हैं और दूसरी ओर उसकी चाह का मज़ाक उड़ाते टीवी चैनल हैं जैसे शिवकुमार के पीछे भागते हुए कुत्ते । कुत्ते जो एक सर्टीफ़ाइड , मान्यताप्राप्त कनाडाई रन्डी को मुख्य धारा की हीरोइऩ का दर्जा दे चुके हैं और परिचर्चा का मौजूं तो उसका अभिनय कौशल बन चुका है । फिर, हैलिकॉप्टर से टॉमीगन साधे शाकाल है एक पूरी घाघ व्यवस्था । तो क्या शिवकुमार को शाकाल दिन दहाड़े फिर से मार डालेगा और क्या उसकी लाश हमेशा की तरह एक नामालूम जज़ीरे की चट्टान से झूल जाएगी और क्या असल ज़िंदगी में डीसीपी शिवकुमार का बदला भी लिया जाता है कभी.........




Thursday, 26 July 2012

क्या तुमने ताशि नामग्याल को देखा है?

मैंने यक़ीनन नहीं देखा कभी भी उसे । बस रेडियो पे सुना भर था कि कोई एक चरवाहा था ताशि नामग्याल जिसने सबसे पहले सेना को खबर दी 99 की गर्मियों में कि पाकिस्तानी घुस आए हैं । यों, मैं जानता तो जूही चावला को भी नहीं लेकिन मशहूर अदाकारा रही हैं ,पर्दे पे देखा है ठुमकते हुए । 26 / 11 निपटने के बाद जो महफ़िल सजाई थी एक नामी चैनल की वाचाल एंकर ने ठीक गेटवे ऑफ़् इंडिया पर उसमें कहती थीं जूही चावला कि क्या अब हमारी ये हालत हो गई कि कोई भी सरहद पार कर आए और हमारे चौराहों को लहू-लुहान कर दे इतनी आसानी से? जूही की आवाज़ में दर्द था और एंकर की आवाज़ में आक्रोश । जुलाई... फिर वही महीना जिसमें करगिल की जीत का विजय दिवस मनता है , मनाने वाले दक्षिण पन्थी कहलाते हैं सो अलग है । मैंने भी ड्यूटी की थी , मनाता हूँ मैं भी । फ़ेस बुक पर चिपकाया करता हूँ जय हिन्द के स्लोगन । आप भी करते होंगे या कम से कम दिल में तो मानते होंगे कि इतनी झिलमिलाहट है तो उनके खून के करम से जिन्होंने बहाया वो खुल के नंगे बर्फ़ानी पहा़ड़ों पे, ये सब टीम-टाम, ये भ्रष्टाचार हटाओ, ये प्राणायाम की कक्षाएँ इसीलिए हैं क्योंकि प्राण हैं । लेकिन ये सब तब हुआ जब एक ग़रीब भेड़ चराने वाले ने दुश्मन की मौजूदगी की खबर दी । अगर कोई ताशि होता अरब सागर में तो वो कभी ना होता जो हुआ । लेकिन क्या हमने कभी उसे वो मान दिया , वो पहचान दी जिसका वो हकदार है ? ताशि नामग्याल शहीदों के साथ-साथ शु्क्रिया तुम्हारा भी । तुम हमारी हर सीमा पर क्यों नहीं हो भाई ? भले ही कोई भड़वा चैनल तुम्हें याद ना करता हो लेकिन सलाम तुमको एक आम हिन्दुस्तानी का ।



हालांकि मैंने कभी देखा नहीं है तुम्हें । हो सकता है कभी टीवी पर दिखाए गए हो तुम........लेकिन जो नहीं हैं हमारे बीच काश उनके साथ लोग तुम्हें भी याद ज़रूर करें । तुम जो अब भी हो ।क्या आय वांट टू किल कसाब कहने वाले ये सुन रहे हैं ?

Monday, 23 July 2012

मयख़ाने में निचोड़

तुम अकेले हो...

Friday, 20 July 2012

काका के जाने पर...

नहीं कुछ नहीं बदला है , न तो कोई कमी ही हुई है ज़मीं पर या बहते हुए पानियों में हाँ शायद इज़ाफ़ा हुआ हो तो हो ख़लाओं में । क्या मालूम लेकिन याद रहेगा वो डाकिया और वो अपाहिज सिपाही जिसे किसी नामुराद, भड़वे न्यूज़ चैनल ने याद ना किया लेकिन हम हैं काका आपके क़द्रदान हम नहीं भूले अब तलक । आमीन, जहाँ भी हो आपकी आत्मा शान्ति पाए , शान्ति पाए, शान्ति पाए -


















Friday, 13 July 2012

An excerpt from In memory of W.B. Yeats by W.H. Auden

An old piece of poetry which perhaps best describes the contemporary scenario.


  Earth, receive an honoured guest:
          William Yeats is laid to rest.
          Let the Irish vessel lie
          Emptied of its poetry.

          In the nightmare of the dark
          All the dogs of Europe bark,
          And the living nations wait,
          Each sequestered in its hate;

          Intellectual disgrace
          Stares from every human face,
          And the seas of pity lie
          Locked and frozen in each eye.

          Follow, poet, follow right
          To the bottom of the night,
          With your unconstraining voice
          Still persuade us to rejoice;

          With the farming of a verse
          Make a vineyard of the curse,
          Sing of human unsuccess
          In a rapture of distress;

          In the deserts of the heart
          Let the healing fountain start,
          In the prison of his days
          Teach the free man how to praise.

Sunday, 13 May 2012